हम हिंदू हैं।
1. हम हिंदू हैं। प्राचीन काल से हिन्दुस्थान में रहते आए हैं। हमारा महाविशाल समाज है। इसमें विभिन्नताएँ होंगी, किन्तु हम सब एक हैं। पूर्व से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक यह हमारा देश है। इस देश और समाज से हमारी श्रध्दा संबध्द है। लोग हिंदू की व्याख्या पूछते हैं। मैं तो कहूँगा कि हम हिंदू हैं और हम जिसे कहेंगे वह हिंदू है। जगद्गुरु श्रीशंकराचार्य के समान हमें भी शंख फूँककर कहना होगा कि जिसके कान में शंखध्वनि पड़ी, वह हिंदू हो गया। आज तो हम इतना ही जानते हैं कि हम हिंदू हैं। हमारी समान श्रध्दाएँ हैं, परंपराएँ हैं, श्रेष्ठ महापुरुषों के समान जीवन आदर्श हैं |
2. एक हजार वर्ष पूर्व यहाँ हिंदू के अतिरिक्त किसी दूसरे का नाम तक नहीं था। अनेक पंथ, संप्रदाय, भाषाएँ, जातियाँ, राज्य रहे हों, किंतु सब हिंदू ही थे। शक, हूण, ग्रीक आदि आए, किन्तु उन्हें हिंदू बनना पड़ा। वे हमें भ्रष्ट करने में असफल रहे। बल्कि हमने ही उन्हें पूर्णरूपेण आत्मसात् कर लिया। पहले जहाँ सब ओर हिंदू ही थे, वहाँ आज हमारे ही अंग-प्रत्यंग को खाकर हमारे समाज से अलग होकर अपना प्रसार करनेवाले कई कोटि अहिंदू हैं। इस दृष्टि से हिंदू समाज का ह्रास क्या हमारी ऑंखों के सामने है?
3. 'हिंदू' के सम्बन्ध में कुछ लोग घिसे-पिटे पुराने आरोप दोहराते रहते हैं। आरोपों को सुनकर अपने समाज के लोग घबराते भी हैं। इस राष्ट्रजीवन को किसी अन्य पर्यायी शब्द से बोलने के लिये लोग सलाह भी देते हैं। परंतु क्या पर्याय लेने से मूल अर्थ बदलेगा? जैसे हमारे आर्यसमाजी बंधु कहते हैं कि आर्य कहो। 'आर्य' का भी मतलब वही निकलेगा। कुछ लोग 'भारतीय' शब्द का प्रयोग करने की बात कहते हैं। 'भारत' को कितना ही तोड़-मरोड़कर कहा जाए तो भी उसमें अन्य कोई अर्थ नहीं निकल सकता। अर्थ केवल एक ही निकलेगा 'हिंदू'। तब क्यों न 'हिंदू' शब्द का ही असंदिग्धा प्रयोग करें। सीधा-सादा प्रचलित शब्द 'हिंदू' है।
4. हिंदू शब्द हमारे साथ विशेष रूप से हमारे इतिहास के गत एक सहस्र वर्षों के संकटपूर्णकाल से जुड़ा रहा है। पृथ्वीराज के दिनों से लेकर हमारे समस्त राष्ट्र-निर्माताओं, राज्य-वेत्ताओं, कवियों और इतिहासकारों ने 'हिंदू' शब्द का प्रयोग हमारे जन-समाज और धर्म को अभिहित करने के लिये किया है। गुरु गोविन्दसिंह, स्वामी विद्यारण्य और शिवाजी जैसे समस्त पराक्रमी स्वतंत्रता-सेनानियों का स्वप्न 'हिंदू-स्वराज्य' की स्थापना करना ही था। 'हिंदू' शब्द अपने साथ इन समस्त महान जीवनों, उनके कार्यों और आकाँक्षाओं की मधुर गंध समेटे हुए है। इस कारण यह एक ऐसा शब्द है जो संघ-रूप से हमारी एकात्मता, उदात्तता और विशेष रूप से हमारे जन-समाज को व्यंजित करता है।
5. यह हिंदूराष्ट्र है, इस राष्ट्र का दायित्व हिंदू समाज पर ही है, भारत का दुनिया में सम्मान या अपमान हिंदुओं पर ही निर्भर है। हिंदूसमाज का जीवन वैभवशाली होने से ही इस राष्ट्र का गौरव बढ़ने वाला है। किसी के मन में इस विषय में कुछ भ्रांति रहने का कारण नहीं है।
Santoshkumar B Pandey at 6.17pm
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