डॉ अम्बेडकर: क्या आर्य विदेशी है ?
डॉ अम्बेडकर: क्या आर्य विदेशी है?
कई दिनों से देख रहा हु कुछ अम्बेडकरवादी लोग आर्यो को विदेशी कह रहे है। ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य, जाट, अहीर,गुर्जर सभी विदेशी है इन अम्बेडकरवादियो के अनुसार। इस विषय पर कई बार लिखना चाहता था पर समय के आभाव में नही हो पा रहा था। खैर जो भी हो। अब आते है टॉपिक पर कि क्या आर्य विदेशी है?
अगर मैं आर्यो को स्वदेशी इसी भारत देश का कहूँगा डीएनए रिपोर्ट अनुसार या किसी अन्य विद्वानों के अनुसार तो शायद तथाकथित अम्बेडकरवादी लोगो को परेशानी होगी और पेट दर्द होगा इस बात को पचाने में। इसलिए मैं बाबा भीमराव अम्बेडकर जी के ही विचार रखूंगा जिससे ये प्रूफ होगा की आर्य देशी है।
1) डॉक्टर अम्बेडकर राइटिंग एंड स्पीचेस खंड 7 पृष्ट में अम्बेडकर जी ने लिखा है कि आर्यो का मूलस्थान(भारत से बाहर) का सिद्धांत वैदिक साहित्य से मेल नही खाता। वेदों में गंगा,यमुना,सरस्वती, के प्रति आत्मीय भाव है। कोई विदेशी इस तरह नदी के प्रति आत्मस्नेह सम्बोधन नही कर सकता।
2) डॉ अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक "शुद्र कौन"? Who were shudras? में स्पष्ट रूप से विदेशी लेखको की आर्यो के बाहर से आकर यहाँ पर बसने सम्बंधित मान्यताओ का खंडन किया है। डॉ अम्बेडकर लिखते है--
1) वेदो में आर्य जाति के सम्बन्ध में कोई जानकारी नही है।
2) वेदो में ऐसा कोई प्रसंग उल्लेख नही है जिससे यह सिद्ध हो सके कि आर्यो ने भारत पर आक्रमण कर यहाँ के मूलनिवासियो दासो, दस्युओं को विजय किया।
3) आर्य,दास और दस्यु जातियो के अलगाव को सिद्ध करने के लिए कोई साक्ष्य वेदो में उपलब्ध नही है।
4)वेदो में इस मत की पुष्टि नही की गयी कि आर्य,दास और दस्युओं से भिन्न रंग के थे।
5)डॉ अम्बेडकर ने स्पष्ट रूप से शुद्रो को भी आर्य कहा है(शुद्र कौन? पृष्ट संख्या 80)
अगर अम्बेडकरवादी सच्चे अम्बेडकर को मानने वाले है तो अम्बेडकर जी की बातो को माने।
वैसे अगर वो बुद्ध को ही मानते है तो महात्मा बुद्ध की भी बात को माने। महात्मा बुद्ध भी आर्य शब्द को गुणवाचक मानते थे। वो धम्मपद 270 में कहते है प्राणियो की हिंसा करने से कोई आर्य नही कहलाता। सर्वप्राणियो की अहिंसा से ही मनुष्य आर्य अर्थात श्रेष्ठ व् धर्मात्मा कहलाता है।
यहाँ हम धम्मपद के उपरोक्त बुध्वचन का maha bodhi society, banglore द्वारा प्रमाणित अनुवाद देना आवश्यक व् उपयोगी समझते है।
वैसे वेद भी आर्य शब्द को गुणवाचक मानते है। जो श्रेष्ठता को बताता है। देखे ऋग्वेद 10/64/1 को जिसके अनुसार आर्य वो कहलाते है जो भूमि पर सत्य,अहिंसा,पवित्रता,परोपकार आदि व्रतों को विशेष रूप से धारण करते है।
नोट: स्वामी दयानंद सरस्वती रचित सत्यार्थ प्रकाश अवश्य पढ़े। चलो वेदो की ओर।
ओउम्।🌷🌹🕉⛳🙏
Santoshkumar B Pandey at 7.43am.
कई दिनों से देख रहा हु कुछ अम्बेडकरवादी लोग आर्यो को विदेशी कह रहे है। ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य, जाट, अहीर,गुर्जर सभी विदेशी है इन अम्बेडकरवादियो के अनुसार। इस विषय पर कई बार लिखना चाहता था पर समय के आभाव में नही हो पा रहा था। खैर जो भी हो। अब आते है टॉपिक पर कि क्या आर्य विदेशी है?
अगर मैं आर्यो को स्वदेशी इसी भारत देश का कहूँगा डीएनए रिपोर्ट अनुसार या किसी अन्य विद्वानों के अनुसार तो शायद तथाकथित अम्बेडकरवादी लोगो को परेशानी होगी और पेट दर्द होगा इस बात को पचाने में। इसलिए मैं बाबा भीमराव अम्बेडकर जी के ही विचार रखूंगा जिससे ये प्रूफ होगा की आर्य देशी है।
1) डॉक्टर अम्बेडकर राइटिंग एंड स्पीचेस खंड 7 पृष्ट में अम्बेडकर जी ने लिखा है कि आर्यो का मूलस्थान(भारत से बाहर) का सिद्धांत वैदिक साहित्य से मेल नही खाता। वेदों में गंगा,यमुना,सरस्वती, के प्रति आत्मीय भाव है। कोई विदेशी इस तरह नदी के प्रति आत्मस्नेह सम्बोधन नही कर सकता।
2) डॉ अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक "शुद्र कौन"? Who were shudras? में स्पष्ट रूप से विदेशी लेखको की आर्यो के बाहर से आकर यहाँ पर बसने सम्बंधित मान्यताओ का खंडन किया है। डॉ अम्बेडकर लिखते है--
1) वेदो में आर्य जाति के सम्बन्ध में कोई जानकारी नही है।
2) वेदो में ऐसा कोई प्रसंग उल्लेख नही है जिससे यह सिद्ध हो सके कि आर्यो ने भारत पर आक्रमण कर यहाँ के मूलनिवासियो दासो, दस्युओं को विजय किया।
3) आर्य,दास और दस्यु जातियो के अलगाव को सिद्ध करने के लिए कोई साक्ष्य वेदो में उपलब्ध नही है।
4)वेदो में इस मत की पुष्टि नही की गयी कि आर्य,दास और दस्युओं से भिन्न रंग के थे।
5)डॉ अम्बेडकर ने स्पष्ट रूप से शुद्रो को भी आर्य कहा है(शुद्र कौन? पृष्ट संख्या 80)
अगर अम्बेडकरवादी सच्चे अम्बेडकर को मानने वाले है तो अम्बेडकर जी की बातो को माने।
वैसे अगर वो बुद्ध को ही मानते है तो महात्मा बुद्ध की भी बात को माने। महात्मा बुद्ध भी आर्य शब्द को गुणवाचक मानते थे। वो धम्मपद 270 में कहते है प्राणियो की हिंसा करने से कोई आर्य नही कहलाता। सर्वप्राणियो की अहिंसा से ही मनुष्य आर्य अर्थात श्रेष्ठ व् धर्मात्मा कहलाता है।
यहाँ हम धम्मपद के उपरोक्त बुध्वचन का maha bodhi society, banglore द्वारा प्रमाणित अनुवाद देना आवश्यक व् उपयोगी समझते है।
वैसे वेद भी आर्य शब्द को गुणवाचक मानते है। जो श्रेष्ठता को बताता है। देखे ऋग्वेद 10/64/1 को जिसके अनुसार आर्य वो कहलाते है जो भूमि पर सत्य,अहिंसा,पवित्रता,परोपकार आदि व्रतों को विशेष रूप से धारण करते है।
नोट: स्वामी दयानंद सरस्वती रचित सत्यार्थ प्रकाश अवश्य पढ़े। चलो वेदो की ओर।
ओउम्।🌷🌹🕉⛳🙏
Santoshkumar B Pandey at 7.43am.
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